Aham Bhaaw Kee Nivritti April 03, 2000 Free (Hindi Writing)
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आत्मा का गुण या स्वभाव सम रहना है। उसमें उतार-चढ़ाव, सुख-दुःख और आधि-व्याधि नहीं होते, पर मनुष्य को आत्मा में ऊँचा-नीचा, सुख-दुःख, राग-द्वेष तथा प्रेम-घृणा दिखता है। जिसको यह सब जान पड़ता है, उसका नाम “मैं” या “अहंकार” है। उसी का नाम कलना, मन, संकल्प, स्फुरण, चेतना, अहंकार और बुद्धि है। आत्मा इस अहंकार का या मनुष्य का स्वरूप है जो सदा शुद्ध और मुक्त है, किन्तु उसी आत्मा में से ही चेतना निकलती है जो अहंकार के गुण वाली बन जाती है। उसी को मनुष्य “मैं” के नाम से कहता है।