आत्मा का गुण या स्वभाव सम रहना है। उसमें उतार-चढ़ाव, सुख-दुःख और आधि-व्याधि नहीं होते, पर मनुष्य को आत्मा में ऊँचा-नीचा, सुख-दुःख, राग-द्वेष तथा प्रेम-घृणा दिखता है। जिसको यह सब जान पड़ता है, उसका नाम “मैं” या “अहंकार” है। उसी का नाम कलना, मन, संकल्प, स्फुरण, चेतना, अहंकार और बुद्धि है। आत्मा इस अहंकार का या मनुष्य का स्वरूप है…
स्वामी श्याम का परिचय स्वामी जी ही दे सकते हैं। वह ब्रह्म स्वरूप हैं और उन्हें अपने आप का अनुभव हो चुका है। उसी अनुभव चेतना को लेकर उनकी वाणी से जो ज्ञान निस्सृत हुआ है, वह हम सभी ने गीतों में गाया है व लेखों में पढ़ कर अपने जीवन में अपनाया है। हमारी पहुँच वहाँ तक नहीं है
स्वामी श्याम का परिचय स्वामी जी ही दे सकते हैं। वे ब्रह्म स्वरूप हैं और उन्हें अपने आप का अनुभव हो चुका है। उसी अनुभव चेतना को लेकर उनकी वाणी से जो ज्ञान निस्सृत हुआ है, वह हम सभी ने गीतों में गाया है व लेखों में पढ़ कर अपने जीवन में अपनाया है।
स्वामी श्याम का परिचय स्वामी जी ही दे सकते हैं। वह ब्रह्म स्वरूप हैं और उन्हें अपने आप का अनुभव हो चुका है। उसी अनुभव चेतना को लेकर उनकी वाणी से जो ज्ञान निस्सृत हुआ है, वह हम सभी ने गीतों में गाया है व लेखों में पढ़ कर अपने जीवन में अपनाया है। हमारी पहुँच वहाँ तक नहीं है…
स्वामी श्याम का परिचय स्वामी जी ही दे सकते हैं। वे ब्रह्म स्वरूप हैं और उन्हें अपने आप का अनुभव हो चुका है। उसी अनुभव चेतना को लेकर उनकी वाणी से जो ज्ञान निस्सृत हुआ है, वह हम सभी ने गीतों में गाया है व लेखों में पढ़ कर अपने जीवन में अपनाया है।